Wednesday, May 28, 2014

Mera jhgda

Kismat se ladte jhagdte
yha aa hi gaye
Ragda jhagda karte karte
Shayd zindgi jina sikh liye
Tumse usse kha bakheda
Sara bakheda to kismat ka /
Mathe par pada pasina ,
ya paani ho aankho ka ,yehi sb to uphar mila hai upar vale ka
Kyun dosh diye jaa rahe ki ,
humse hai ki unse hai
Ye to khel hai us nirale ka/
Pyar mohbbat aasan khan
Kha galtyon pr  muskra diya
Baithe hai Lekar maan samman ka bojha
,aur Chhati chhapan fit ka
Zindgi jina mushkil bana liya
Karke naak uncha swabhimaan ka
Had hai bhai apne gyan ka pitara
Aasaan ko mushkil bna diya

Tuesday, April 16, 2013

रिश्तों की अमानत


                                                                 
...न छोडना अकेला
हम सजीवों की कहानी भी अजीब सी है। किसी स्त्री के गर्भ में जीवन की बुनियाद पड़ते ही वो माँ बन जाती है और वह छोटी सी बुनियाद संतान का रूप ले लेती है। माँ के लिए अपने बच्चे को पाना और बच्चे के लिए माँ का मिल जाना प्रकृति द्वारा बनाया गया एक रिश्ता है। मां के साथ बना रिश्ता इस धरती का सबसे पहला रिश्ता होता है जो जीवन में आगे रिश्ते बनाने की प्रेरणा देता है।  माँ ही तो इस जगत में पहली गुरु होतीं है जो जीवन जीने की सारी विधा देतीं हैं। पशु-पक्षी हो या मानव सबों को उसकी माँ हीं जीवन जीने का अंदाज सिखातीं हैं। कुछ रिश्ते जन्म से ही जुड़ जाते हैं। दुनिया में मासूम की आखों के सामने न जाने कितने ही चेहरे होते हैं जिनमें माँ ,पापा, दादा, दादी,नाना, नानी, मामा ,मामी ,चाचा ,चाची  इत्यादि और इन सब रिश्तों के साथ इन लोगों से जुड़ा हुआ एक बड़ा सा समाज। पापा मम्मी दादी इत्यादि रिश्तों को तो समझ लेते हैं। पर समाज के रिश्तों को समझने मे समय लगता है।
कुछ रिश्ते हमें जन्म से मिलते हैं और कुछ हम अपनी समझ से बनाते हैं। इन रिश्तों से जहां एक ओर हमें खुशियां और सहयोग मिलती है तो दूसरी ओर दुख और तकलीफें भी मिलती हैं। इसलिए काफी मुश्किल बात है रिश्तों को समझना और निभाना। हम अक्सर  अपनी जिंदगी में किसी न किसी  रिश्ते से आहत होते हैं। लेकिन रिश्तों से छुटकारा भी पाना न आसान है और न समाधान।
माना किसी रिश्ते से दिल को ठेस पहुंची हो और उससे छुटकारा भी पा लिया तो अगला एक कदम रखते ही नये रिश्ते का बनना तय है और पर कह नहीं सकते की यह नया रिश्ता हमेशा साथ रहेगा या फिर कभी न कभी तो इससे भी तकलीफ मिलेगी।
रिश्ते पुश्तैनी जायदाद की तरह नहीं की अपनी मर्जी से उपयोग किया और न कोई धन है की जब चाहे जैसे चाहें खर्च करते जाएँ। रिश्ते बनाने में जितनी ऊर्जा और मुश्किलें आती है उससे ज्यादा उसे संवारने में व्यय होता है।  और जब हम इसका उपयोग फिजूल मे करते है तो पता नही चलता की कब रिश्ता ही खत्म हो जाए।
हमारी जिंदगी के अनमोल रिश्तों  की डोर बहुत ही नाजुक होती है, ये बात हम सबलोग जानते है पर अपनी जिंदगी में मस्त इन बातों की परवाह ही नही करते और रिश्ते बिखरते चले जाते हैं। यह एक अमानत की तरह है इसे संभाल कर सहेज कर रखने की जरूरत है। जब  हम इन्हें सहेज कर रखना शुरू  करेंगे तो सभी रिश्ते अपने आसपास नजर आएंगे। इससे एक नयी सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी जो हमेशा असुरक्षा की  भावनाओं से दूर रखेंगी और आनंदित वातावरण मे खुशिया भर देगी। आप कभी खुद को अकेला नही पाएंगे। बगैर रिश्तों के जिंदगी जीना इतना आसान भी नहीं प्यार तो होगा ही रिश्ते भी बनेगे ही।

Sunday, December 2, 2012

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी उलझा कर रखेगी कब तक
छोटी सी है  खुद हीं , बहकाकर रखेगी कब तक ।
नाज़ इसको इतना है खुद पर 
बहक जाता हूँ जो मैं कभी 
तो कितना इतराती है खुद पर
बात बनती नहीं कि  बिगाड़ देती है तब तक।
ज़िन्दगी उलझा कर रखेगी कब तक 
छोटी सी है  खुद हीं , बहकाकर रखेगी कब तक ।\
                               

इठलाती ,मंडराती ,झूमती,है ये चारों पहर 
जो निराश हो जाता हूँ मैं  कभी ,
तो अहंकर भरी आंखे मिच  जाती है ,मुझ पर ।
आस कहीं बंधती नही कि  तोड  जाती है तब तक
ये कमर जो लचकाती है, उछल कर जो जाती है,
न जाने  बिजली गिरायी  किधर।
जो थोडा सा हारता हूँ ,मैं कभी 
तो ठुमके के जोड़ से गिरा देती है जमीं पर। 
हासिल कुछ होता नहीं कि ,
हासिये पर हीं ला देती है तब तक। 
ज़िन्दगी उलझा कर रखेगी कब तक
छोटी सी है  खुद हीं , बहकाकर रखेगी कब तक


गाती गुनगुनाती जो कूदती है इधर से उधर
जो खीझकर चाहा कि रिश्ता हीं तोड़ दूँ ,में कभी ,
तो अपने बंधन का अहसास करा गई दिल पर।
रिश्ता जो बना संजो हीं नहीं सका मैं ,
कि कई रिश्ते तोड़ गई अब तक। 
जिंदगी उलझा कर रखेगी कब तक ,
छोटी सी है खुद ही , बहकाकर रखेगी कब तक\।    
                                                 

Wednesday, November 28, 2012

हम में है दम




हर रोज हम बहुत सारी  मुश्किलों  का सामना करते हुए रात का खाना खा कर सोजाते हैं , और सपनों में भी उन्ही मुश्किलों का सामना करते रहते हैं की  जाने कब सुबह हो जाती है पता हीं  नही चलता। इनमे से बहुत सारी  मुसीबते यूँ हीं चलते फिरते किसी की जुबां  से निकले ध्वनियों से दिल और मष्तिस्क को बुरी तरह जख्मी कर जाती है और  फिर उसी उलझन में हम अपनी दिन रात बिता देते हैं । हम कमज़ोर पड़ जाते हैं और दुसरे लोगों द्वारा मिले मुफ्त की तनाव मैं फँस जाते है, और मुफ्त में अपनी मेहनत से कमाई गई रोटी से जो खून बनता है उसे भी जला बैठते  हैं । इस दौरान हमें इसका इल्म  नहीं होता है, पर ज्योहीं  हाइपरटेंशन या डिप्रेशन जैसी बिमारियों के घेरे मे आते हैं तो फिर इस चक्रव्यूह में फँसे होने का एहसास हो   जाता है ।                      

      तो क्यों न हम उन लोगो द्वारा फैलाये जा रहे मानसिक प्रदूषण से खुद को बचालें जो हमें और हमारी पारिवारिक शांति को नुकसान हीं  पहुंचाएगा । कलर्स चैनल पर दिखाए जा रहे  बिग बॉस कार्यक्रम में मनोरंजन हीं सही पर एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग है जिसमे हाल ही में कुछ नए लोग घर में थोड़े समय के लिए आये और घर वालों को उनके द्वारा किये गए क्रियाओं या घटनाओं पे ध्यान नहीं देने का निर्देश बिग बॉस द्वारा दिया गया था । और उन लोगों ने बहुत  से सामानों को  बिखेरा और  ढेर सारे अंडे फोड़ दिए तब भी किसी ने चूँ तक नहीं किया ।वैसे तो ये लोग छोटी- छोटी बातों  पर  लड़ते रहते हैं । तो फिर हम क्यों नहीं रियल के बिग बॉस कि  सुने जो हमे खुश रखने के लिए न जाने कितने बहाने देता है और कहता है की कुछ नज़रन्दाज़ करें।                        
           तो दम है तो अपने बिगबॉस के निर्देश को समझिये उन्होनो ने भी किसी को  टाश्क  दिया है की आपको अपनी क्रियाओं तथा घटनायों को अंजाम दे कर नकारात्मक रूप से प्रभावित करें क्योंकि खुशियों को पाना बहुत  हीं  मुश्किल  है ।